आनन्द सिंह
स्वर्ग सन -सुन्दर ,उ गाउँ
पवित्र माटी चुम्मने छाला हमार पाउँ ।।
गर्मी रउङदमे टिकुली के पछारी
बर्षांत मे हेलबहैछली कागज के नाउँ ।।।।
पढाई लिखाइ लागैछाल पहार
हैरदम खेलेैके छाल भुत सवार ।।
नदी , ताल , पोखरी मे नहेनाय
घरमे आइबते झाडुसे करैछाल प्यार ।।।।
धागा के सहारे चङ्गा उडेनाय
चौर घर आगँनमे लुकाछिप्पी खेलनाय ।।
एकछिनमे साथी सँगे झगरा लराय
बादमे पापा से लागछाल पिटाय ।।।।
साइकलके चक्का आ चप्पलके गारी
नै कोनो काम के छाल जिम्मेदारी ।।
लोरी आ मामिके हातसे खाइके बहाना
चन्द्रमाँ छुबके रहेछाल चाहना ।।।।
जाइछेली आमके गाछीमे झुला झुलैला
रुसैछेली मेलामे लड्डु , खेलौना ला ।।
गोर लागेैछेली मन्दिर में देखते साप
झुठ बोल्नाइ , ठग्नाइ मानछेली पाप ।।।।
कोनो काम मे देखबछेली बर नखरा
भाईबहिन सँगे लगाबैछेली बोखरा ।।
झगरा लराई करैला खोजैछेली बहाना
अब बहुते याद आबैय वाल्यकाल के जवाना ।।।।
यो विषयमा टिप्पणी गर्नुहोस् !