बिबेक झा ( रुपक)
करैछी हम रेलक चर्चा
बहुत पिडा के साथ ।
करैछी हम जनकपुर के बात ।।
खुशी तऽ भेल जनकपुरधामक जनता, पुरा भेल जँ मनक बात ।
कएलहुँ जँ वर्षो इन्तजार, नगरमे भेल जे रेलक बात ।।
भिड तऽ देखु मेलो सँ बड़का, जनकपुर छल बड खुस्हाल ।
पचत कहाँ मधेसीके, मधेस आ अप्पन देशक विकास ।।
पहिल दिनमे रेल जे आएल,
सिसा फोडि़ वापस पठाएल ।।
जय मधेसी जय हो मधेस सम्मान खछि अपनेक काज ।।
लऽकऽ चलि आब अप्पन मुद्दा,
बढ़त नहि आगा मधेसक जनता ।
खुशी मे अहाँ सभ कियो छीयै,
खुशी इ बात के हमरो लागला ।
रेलक बात सुनी सभ जनता,
टुटि पड़ल सच आगा पाछा।
देखक भीड़ नेपालीमे एना,
खुशी छलकल देशमे जेना ।
सौदर्यकरण छै कएल रेलके,
रंग मे रंगल नेपालके झण्डा ।
रेलक गेयर छै अटोमेटिक,
सिटमे लागल छै जे गद्दा ।
शौचालयके सिटमे देखु,
चमकइ छै जे एना जँका ।
आगा पाछा इन्जिन लागल,
बीचमे डब्बा सब छै लागल ।
कते निक देखएमे लागे,
मधेसीके शान बढ़ाबे ।
खुशी बढ़ल नेपालीके,
इन्तजार जे दुर छल ।
पचत कहाँ मधेसीके, काज कोनो विकास मे लागल ।
खुशी त बहुते देखेलहुँ, आब चलु किछु दुख सुनाबी ।
कहने जे हम आगा छलहुँ, आब चलु उन्टा बताबी ।।
।।। ह हम मधेसी छी हमरा विकास नै पचैए रेलक सुन्र्दता बिलकुल नहि जँचैया ।
रेल पहिले चल त दियौ, लागल गेट सेहो उखाइर लेबै ।
सिटक गद्दा देखुन, दिने दिन हम नोचि नोची खेबै ।
सुनलहुँ ने हम मधेसी छीयै, सुन्दर चिज केना पचेबै ।
रेलमे लागल जे पंखा छै, किछे दिनमे उहो लऽ जेबै ।
सभ दिन छलहुँ जे रोड पर हगैत, सुन्दर शौचालय मे कोना कऽ जेबै ।
चल तऽ दियौ रेलके, शौचालयके सिट खोलि, लऽ जाकऽ अपना घरमे लगेब ।
हगबै त हम रोडे प,लेकिन शौचालयबला कहेबै ।
देख कऽ इ तऽ नहि कियो कहे, बिना शौचालय घर मे रहे ।
अतबे कहाँ मधेसक बात, दिनेदिन करबै विनाश ।
चल त दियौ त रेल के,महिनेमे कवारा बनेबै ।
जि करैछी आब अहाँके सवाल, इ सुनि नहि हएब बेहाल ।।
कतेक दिन टिकतै इ रेल ? कहिया बदलतै मधेसी के हालरु केना बनेबै नरकपुर सँ जनकपुर ? कोनाक हेतै मधेसक विकास ?
अवश्य अहाँसभ हमर जवाब देवेटा करबै इ आशा और छै विश्वास ।
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